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"ठहरो / नीलेश रघुवंशी" के अवतरणों में अंतर

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मोड़ के ख़त्म होने तक
 
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पीछा करती है
 
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उसकी नन्हीं आँखें मुस्कुराहट में डूबी।
 
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मुस्कुराहाट में छिपी कसक को ले जाओ अपने साथ
 
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बनी नहीं अभी ऎसी सड़क
 
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रोना है मुझे जी भर
 
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रातों के सपनों को याद कर।
 
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कन्धे पर सिर रख करनी हैं जी भर बातें।
 
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11:16, 3 मार्च 2010 के समय का अवतरण

ठहरो!
हिल रहा है अभी नन्हा हाथ
मोड़ के ख़त्म होने तक
पीछा करती है
उसकी नन्हीं आँखें मुस्कुराहट में डूबी।
ठहरो!

मुस्कुराहाट में छिपी कसक को ले जाओ अपने साथ
बनी नहीं अभी ऎसी सड़क
ख़त्म न हो जो मोड़ पर।
ठहरो!

रोना है मुझे जी भर
रातों के सपनों को याद कर।
ठहरो!
कन्धे पर सिर रख करनी हैं जी भर बातें।