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ख़ाली जगह / अमृता प्रीतम

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<poem>
सिर्फ़ दो रजवाड़े थे –
तन के मेंह में भीगती रही,
वह कितनी ही देर
तन के मेंह में जलता गलता रहा।
फिर बरसों के मोह को
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