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ख़ाली जगह / अमृता प्रीतम
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21:32, 7 मार्च 2010
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सिर्फ़ दो रजवाड़े थे –
तन के मेंह में भीगती रही,
वह कितनी ही देर
तन के मेंह में
जलता
गलता
रहा।
फिर बरसों के मोह को
अनिल जनविजय
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