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लेखक: [[गा़लिब]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna|रचनाकार= ग़ालिब|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:गा़लिब]]<poem>बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल<ref>बच्चों का खेल</ref> है दुनिया, मेरे आगेहोता है शब-ओ-रोज़<ref>रात और दिन</ref> तमाशा, मेरे आगे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*इक खेल है औरंग-ए-सुलेमां<ref>सुलेमान नामक अवतार का राजसिंहासन</ref> मेरे नज़दीकइक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा<ref>ईसा का चमत्कार जिनकी फूँक से मुर्दे जीवित हो उठते थे</ref>, मेरे आगे
बाज़ीचाजुज़<ref>के सिवा</ref> नाम, नहीं सूरत-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे आ़लम<brref>संसार का अस्तित्व</ref> मुझे मंज़ूर होता है शबजुज़ वहम, नहीं हस्ती--रोज़ तमाशा मेरे आगे अशया<brref>अस्तित्व जैसी चीज़<br/ref>, मेरे आगे
इक खेल होता है औरंग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक निहाँ<brref>लुप्त</ref> गर्द में सहरा मेरे होते इक बात घिसता है एजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे जबीं<brref>माथा<br/ref>ख़ाक पे दरिया, मेरे आगे
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर <br>मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया तू देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे <br><br>
होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते सच कहते हो, ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा<brref>गर्वितऔर आत्म-अलंकृत</ref> हूँ, न क्यों हूँ घिसता बैठा है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे बुत-ए-आईना<brref>प्रिय का दर्पण<br/ref>सीमा<ref>विशेषकर</ref>, मेरे आगे
मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार<brref>बात का अंदाज़ यूँ कि जैसे फूल झड़ते हों</ref>तू देख के क्या रन्ग है तेरा मेरे आगे रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा<brref>मधुपात्र और मदिरा<br/ref>, मेरे आगे
सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ न क्योँ हूँ <br>बैठा नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है बुत-ए-आईना सीमा , मैं रश्क से गुज़रा क्योंकर कहूँ, लो नाम न उनका मेरे आगे <br><br>
फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार ईमाँ<brref>धर्म</ref> मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ़्र<ref>अधर्म</ref>रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा काबा मेरे आगे पीछे है, कलीसा<brref>गिरजाघर<br/ref>मेरे आगे
नफ़्रत क गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा आशिक़ हूँ, पे माशूक़-फ़रेबी<brref>माशूक़ को रिझाने का काम</ref> है मेरा काम क्योँ कर कहूँ लो नाम ना उस का मजनूं को बुरा कहती है लैला, मेरे आगे <br><br>
इमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र <br>ख़ुश होते हैं, पर वस्ल में, यूँ मर नहीं जाते काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे आई शबे-हिजराँ<brref>विरह-रात्रि<br/ref>की तमन्ना, मेरे आगे
आशिक़ हूँ पे माशूक़फ़रेबी है मेर काम मौज-ज़न<brref>मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे लहरें मारता हुआ<br/ref>इक क़ुल्ज़ुमे-ख़ूँ<brref>रक्त का समुद्र</ref> काश! यही हो आता है अभी देखिये क्या-क्या, मेरे आगे
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते गो हाथ को जुम्बिश<brref>आई शब-ए-हिजराँ की तमन्ना मेरे आगे हरक़त<br/ref><br> है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश! यही हो <br>आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे <br><br> गो हाथ को जुम्बिश नहीं , आँखों में तो दम है <br>रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे <brref>शराब का प्याला और सुराही<br/ref>, मेरे आगे हमपेशा-ओ-हममशरबहमशरब-ओ-हमराज़ <ref>सहव्यवसायी/सहपंथी,मेरे जैसा शराबी और विश्वासपात्र</ref> है मेरा <br>'गा़लिबग़ालिब' को बुरा क्योँ क्यों, कहो अच्छा , मेरे आगे <br><br/poem>{{KKMeaning}}
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