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|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब}} [[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatKataa}}
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एक अहले-दर्द ने सुनसान जो देखा क़फ़स<ref>पिंजरा</ref>
ये निशानी रह गयी है अब बजाए-अन्दलीब
शब को ज़ौक़े-गुफ़्तगू से तेरे तेरा दिल बेताब थाशोख़ी-ए-वहशत से अफसाना फुसूनेअफ़साना फ़ुसूने<ref>जादू</ref>-ख़्वाब था
वां हजूमे-नग़्महाए-साज़े-इशरत था 'असद'
नाख़ुने-ग़म यां <ref>यहाँ</ref> सरे-तारे-नफ़स<ref>सांस</ref> मिज़राब<ref>सितार बजाने का छल्ला</ref> था
दूद<ref>धुआंधुआँ</ref> को आज उसके मातम में सियहपोशी हुईवो दिले-सोज़ां सोज़ाँ कि कल तक शम्ए-मातमख़ाना थाशिकवा-ए-यारां याराँ ग़ुबारे-दिल में पिनहां पिन्हाँ कर दिया'ग़ालिब' ऐसे गंज<ref>ख़जाना</ref> को शायां शायाँ यही वीराना था
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