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|संग्रह=
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<Poem>
एक मोअ'म्मा<ref>पहेली</ref> है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
एक मोअ'म्मा ख़ल्क़ कहती है समझने जिसे दिल तेरे दीवाने का ना समझाने का<br>ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने काएक गोशा<brref>कोना<br/ref>है यह दुनिया इसी वीराने का
ख़ल्क़ कहती मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> क़िस्सा-ए-ग़म यह है जिसे कि दिल तेरे दीवाने का<br>रखता हूँएक गोशा राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है यह दुनिया इसी वीराने इस अफ़साने का<br><br>
मुख़्तसर क़िस्सा-ए-ग़म यह तुमने देखा है कि दिल रखता हूँ<br>कभी घर को बदलते हुए रंगराज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का<br><br>
तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग<br>दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदेंआओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का<br><br>
दिल से पोंछीं तो हमने छानी हैं आँखों में लहू की बूंदेंबहुत दैर-ओ-हरम<brref>मंदिर और मस्जिद</ref> की गलियाँसिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का<br><br>
हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम की गलियाँहर नफ़स<brref>कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने कासांस<br/ref><br> हर नफ़स उमरे -गुज़िश्ता <ref>बीत चुका समय</ref> की है मय्य्त फ़ानीमय्यत<brref>मौत का मातम</ref> फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का
</poem>
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