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"हम तो बचपन में भी अकेले थे / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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हम तो बचपन में भी अकेले थे <br>
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थीं सजी हसरतें दूकानों पर
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे <br><br>
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ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के <br>
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एक तरफ़ आँसूओं के रेले थे <br><br>
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ख़ुदकुशी क्या दुःखों का हल बनती  
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ज़िन्दगी के अजीब मेले थे <br><br>
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आज ज़ेहन-ओ-दिल भूखों मरते हैं <br>
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ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों फ़ाके हमने झेले थे <br><br>
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उन दिनों हमने फ़ाक़े झेले थे
ख़ुदकुशी क्या ग़मों का हल बनती <br>
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मौत के अपने सौ झमेले थे <br><br>
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07:37, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण

हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
 
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे

थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
 
ख़ुदकुशी क्या दुःखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे

ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाक़े झेले थे