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"हम तो बचपन में भी अकेले थे / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर
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07:37, 30 मार्च 2010 के समय का अवतरण
हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
इक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
इक तरफ़ आँसुओं के रेले थे
थीं सजी हसरतें दूकानों पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे
ख़ुदकुशी क्या दुःखों का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे
ज़हनो-दिल आज भूखे मरते हैं
उन दिनों हमने फ़ाक़े झेले थे