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मैं और मेरी आवारगी / जावेद अख़्तर का नाम बदलकर मैं और मिरी आवारगी / जावेद अख़्तर कर दिया गया है: spelling
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[= जावेद अख़्तर]]|संग्रह= तरकश / जावेद अख़्तर}}[[Category:कविताएँग़ज़ल]][[Category:जावेद अख़्तर]]<poem>फिरते हैं कब से दर-बदर अब इस नगर अब उस नगरइक दूसरे के हमसफ़र मैं और मिरी आवारगीनाआश्ना<ref>अपरीचित</ref> हर रहगुज़र नामेहरबां हर इक नज़रजाएँ तो अब जाएँ किधर मैं और मिरी आवारगी
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थेबेफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर<ref>प्रसन्न</ref> थे दिलशाद<ref>दिल से खुश</ref> थेवो चाल ऐसी चल गया हम बुझ गये दिल जल गयानिकले जलाके अपना घर मैं और मिरी आवारगी
फिरते हैं कब से दरबदर अब इस नगर अब उस नगर<br>जीना बहुत आसान था इक शख़्स का एहसान थाएक दूसरे के हमसफ़र मैं और मेरी आवारगी<br>हमको भी इक अरमान था जो ख़्वाब का सामान थाना आशना हर रहगुज़र ना मेहरबाँ अब ख़्वाब हैं न आरज़ू अरमान है एक नज़र<br>न जुस्तजूजायें तो अब जायें किधर यूँ भी चलो ख़ुश हैं मगर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
हम भी कभी आबाद थे ऐसे कहाँ बरबाद थेवो माहवश<brref>बिफ़िक्र थे आज़ाद थे मसरूर थे दिलशाद थेचाँद जैसी<br/ref>वो चाल ऐसि चल गया हम बुझ गये दिल जल गयामाहरू<brref>चाँद जैसे चेहरेवाली</ref> वो माहे कामिल<ref>पूरा चाँद</ref> हू-बहूनिकले जला के अपना घर मैं और मेरी आवारगीथीं जिस की बातें कू-बकू<brref>गली-गली<br/ref>उससे अजब थी गुफ़्तगूफिर यूँ हुआ वो खो गई तो मुझको ज़िद सी हो गईलायेंगे उस को ढूँढकर मैं और मिरी आवारगी
ये दिल ही था जो सह गया वो माह-ए-वश वो माह-ए-रूह वो माह-ए-कामिल हूबहू<br>बात ऐसी कह गयाथीं जिस की बातें कूबकू उस से अजब थी गुफ़्तगू<br>कहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गयाफिर यूँ हुआ जब कहके वो खो गई और मुझ को ज़िद सी हो गई<br>दिलबर गया तेरे लिये मैं मर गयालायेंगे उस को ढूँड कर रोते हैं उसको रात भर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
अब ग़म उठायें किसलिये आँसू बहाएँ किसलियेये दिल ही था जो सह गया वो बात ऐसी कह गया<br>जलाएँ किसलिये यूँ जाँ गवायें किसलियेपेशा न हो जिसका सितम ढूँढेगे अब ऐसा सनमकहने को फिर क्या रह गया अश्कों का दरिया बह गयाहोंगे कहीं तो कारगर<brref>जब कह कर वो दिलबर गया ती लिये मैं मर गयासफल<br/ref>रोते हैं उस को रात भर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
अब ग़म उठायें किस लिये ये दिल जलायें किस लियेआसार हैं सब खोट के इमकान<brref>आँसू बहायें किस लिये यूँ जाँ गवायें किस लियेसंभावना<br/ref>हैं सब चोट केपेशा न हो जिस का सितम ढूँढेगे घर बंद हैं सब गोट के अब ऐसा सनम<br>ख़त्म है सब टोटकेहोंगे कहीं तो कारगर क़िस्मत का सब ये फेर है अँधेर ही अँधेर हैऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br>
आसार हैं सब खोट के इम्कान हैं सब चोट के<br>घर बन्द हैं सब कोट के अब ख़त्म है सब टोटके<br>क़िस्मत का सब ये खेल है अंधेर ही अंधेर है<br>ऐसे हुए हैं बेअसर मैं और मेरी आवारगी<br><br> जब हमदम-ओ-हमदमो हमराज़ था तब और ही अन्दाज़ था<br>अब सोज़ <ref>दर्द</ref> है तब साज़ <ref>बाध्य</ref> था अब शर्म है तब नाज़ था<br>अब मुझ से मुझसे हो तो हो भी क्या है साथ वो तो वो भी क्याइक बेहुनर इक बेसमर<ref>निष्फल<br/ref>एक बेहुनर एक बेसबर मैं और मेरी मिरी आवारगी<br><br/poem>{{KKMeaning}}
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