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"विवाह-प्रथा / राग तेलंग" के अवतरणों में अंतर

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21:44, 2 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

तमाम सुंदर लड़कियाँ
उद्योगपतियों, अफसरों, डॉक्टरों, इंजीनियरों,
इंस्पेक्टरो और दलालों के हिस्से में आईं,
बाकी सारी अच्छी लड़कियाँ
दोयम दर्ज़े के नागरिक माने जाने वाले
भले और सीदे-सादे लोगों के नसीब में थीं
यह सीधा-सीधा अपहरण और समझौते का दृश्य था
जिसे समाज वैधता प्रदान करता था
अग्निसाक्षी होकर
चला आ रहा था यह सब
एक लंबे समय से
जिसमें अधिकांश विवाह बेमेल सिद्ध होते जाते
जिनमें कुंडलियों के मिलने-मिलाने और
न मिलने और मंगल, राहु-केतु की भूमिकाएँ
कुल मिलाकर संदिग्ध थीं
मगर सारा कुछ
विश्वास के नाम पर स्वीकार्य बनाया जाता
ऐसी व्यवस्था
जिसमें कइयों का घुटता था दम,
मनोरोगी करार दिए जाते विद्रोही और
जोड़ी मिलाने वाले कहाते प्रगतिशील
इस हाराकिरी में
सबसे नाज़ुक संवेदनाओं के लुप्त होने का मातम
किस-किसने मनाया
इसका कोई इतिहास
हमारे भूगोल की किसी किताब में नहीं
कितनी गहरी खाइयों में छुपकर बैठे
घुटनों के बीच मुँह ढाँपे मासूम चेहरों ने
कितनी लंबी घनी-स्याह रातों में रोका अपना क्रंदन
किसने सुना ?
ध्यान रहे !
जीवन-साथी चुन दिए जाने के
हर फ़ैसले को
सिर झुकाकर मंजू़र किए जाने से पहले
अपने क़ातिलों
की शिनाख़्त कर लेने का
एक मौक़ा सबको ज़रूर मिलता है ।