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यहाँ कुछ भी अतिरिक्त नहीं है | यहाँ कुछ भी अतिरिक्त नहीं है |
21:58, 2 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
यहाँ कुछ भी अतिरिक्त नहीं है
जिनके एक से अधिक बच्चे हैं
वे पहले से ज़्यादा प्यार की बदौलत हैं
इसलिये ज़रूरी है
हरेक उसको सहेजा जाये
जो अतिरिक्त नहीं है
यहाँ मामूली से मामूली चीज़ों के होने का
कुछ न कुछ मतलब है
बहुत मतलब है
एक अदना सी चींटी के होने का
कि उसके होने से पता चलता है
जीवन में
मिठास की खोज
कभी ख़त्म नहीं होती और
करेले का अस्तित्व बताता है
मीठे की अधिकता से
मारा जा सकता है मनुष्य
हरेक अपने होने की
सार्थकता की ओर इशारा कर रहा है
उसे समझो !
समझो रेत के उस छोटे कण की महत्ता
जो तुम्हारी आँख में इस तरह घुस सकता है कि
वह चट्टान की तरह लगे
जो तुम्हारी बहुमंज़िला इमारत में है जड़ा हुआ
जिसने कितने तो नदियों-समुद्रों के साथ यात्रा की
तुम्हारी उम्र से भी ज़्यादा समय तक
समझो हवा की वज़ह से
फटे केलेण्डर में जड़ी उस एक तारीख़ की हैसियत
जो एक दिन हवा का रुख़ बदल सकती है
क्षितिज में बिन्दु सा दीख रहा वह परिन्दा
जब ज़मीन पर आकर अपने पंख साफ़ करने बैठेगा
तब देखना उसकी आंखों में
कि हवा और आसमान को पढ़ने का हुनर
और तराशा जा चुका है
यहाँ एक-एक बात का मतलब है
यहाँ कुछ भी फालतू नही है
नहीं है खेलते हुए
हर नन्हे कदम की कोई भी हरकत बेमानी
न ही उन्हें निहारते बुज़ुर्गो के होंठों की मुस्कराहट और
न ही गर्भ में पलते शिशु की धड़कनों को महसूस करती
उस माँ के सीने का
एक भी उतार-चढ़ाव
यहां हरेक का कुछ न कुछ मतलब है
एक लम्हा भी अतिरिक्त नहीं किसी के पास
ठीक वैसे ही
जैसे इस कविता में एक भी शब्द ।