"नारी एक कला है / केदारनाथ पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
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अति इन्दु मनी से, | अति इन्दु मनी से, | ||
नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है। | नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है। | ||
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तनया-प्रिया-जननि के | तनया-प्रिया-जननि के | ||
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जीवन में बहने वाली, | जीवन में बहने वाली, | ||
विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है। | विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है। | ||
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है आधार-शिला सुन्दरता की | है आधार-शिला सुन्दरता की | ||
मधु प्रकृति-परी सी, | मधु प्रकृति-परी सी, | ||
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मनु की उस तरुण-तरी सी, | मनु की उस तरुण-तरी सी, | ||
तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है। | तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है। | ||
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करुणा की प्रतिमा वियोग की | करुणा की प्रतिमा वियोग की | ||
मूर्ति-मधुर-अलबेली | मूर्ति-मधुर-अलबेली | ||
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जग आधार अकेली, | जग आधार अकेली, | ||
सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है | सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है | ||
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अमृत-सिन्धु ,अमृतमयी | अमृत-सिन्धु ,अमृतमयी | ||
जग की कल्याणी वाणी। | जग की कल्याणी वाणी। | ||
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तेरी चरण निशानी, | तेरी चरण निशानी, | ||
तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है। | तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है। | ||
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नारी एक कला है॥ | नारी एक कला है॥ | ||
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02:10, 5 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।
फूलों से भी अधिक सुकोमल
नरम अधिक नवनी से,
प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वाली
अति इन्दु मनी से,
नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है।
तनया-प्रिया-जननि के
अवगुण्ठन में रहने वाली,
सत्यं शिवम् सुन्दरम् सी
जीवन में बहने वाली,
विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।
है आधार-शिला सुन्दरता की
मधु प्रकृति-परी सी,
शुभ संसृति का बीज लिये,
मनु की उस तरुण-तरी सी,
तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है।
करुणा की प्रतिमा वियोग की
मूर्ति-मधुर-अलबेली
निज में ही परिपूर्ण प्रेममय
जग आधार अकेली,
सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है
अमृत-सिन्धु ,अमृतमयी
जग की कल्याणी वाणी।
अब भी चम-चम चमक रही हैं
तेरी चरण निशानी,
तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है।
नारी एक कला है॥