और केवल बबूल के फूलों की
महक जाग रही है
तब दूधिया चॉंदनी चाँदनी में
धान से लदी वह लौट रही है
लौट रहे हैं अन्न
बचपन को याद करते
घंटियों की टुनुन-टुनुन
गॉंव गाँव की नींद तक पहुंच पहुँच रही हैऔर सारा गॉंवगाँव
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है
हिल रही हैं
अलगनी में टॅंगी टँगी हुई कन्दीलेंऔर चमक रहा है गॉंव गाँव का कन्धाएक मॉं माँ के कण्ठ से उठ रही है लोरीकि चॉंदी चाँदी के कटोरे में भरा है दूध
और घुल रहा है बताशा
बैलगाड़ी पहुंच पहुँच जाना चाहती है गॉंवगाँवदूध में बताशे के घुलने से पहले.पहले।
</poem>
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:47, 24 अप्रैल 2010 (UTC)