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− | पहाड़ को कठोर मत समझो | + | पहाड़ को कठोर मत समझो |
− | पहाड़ को नोचने पर | + | पहाड़ को नोचने पर |
− | पहाड़ के | + | पहाड़ के आँसू बह आते हैं |
− | सड़कें करवट बदल | + | सड़कें करवट बदल |
− | चलते-चलते रुक जाती हैं | + | चलते-चलते रुक जाती हैं |
− | पहाड़ को | + | पहाड़ को |
− | दूर से देखते हो तो | + | दूर से देखते हो तो |
− | पहाड़ ऊँचा दिखता है | + | पहाड़ ऊँचा दिखता है |
− | करीब आओ | + | करीब आओ |
− | पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा | + | पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा |
− | पहाड़ के ज़ख्मी सीने में | + | पहाड़ के ज़ख्मी सीने में |
− | रिसते धब्बे देख | + | रिसते धब्बे देख |
− | चीखो मत | + | चीखो मत |
− | पहाड़ को नंगा करते | + | पहाड़ को नंगा करते वक़्त |
− | तुमने सोचा न था | + | तुमने सोचा न था |
− | पहाड़ के जिस्म में भी | + | पहाड़ के जिस्म में भी |
− | छिपे रहस्य हैं। | + | छिपे रहस्य हैं। |
− | '''2.''' | + | '''2.''' |
− | इसलिए अब | + | इसलिए अब |
− | अकेली चट्टान को | + | अकेली चट्टान को |
− | पहाड़ मत समझो | + | पहाड़ मत समझो |
− | पहाड़ तो पूरी भीड़ है | + | पहाड़ तो पूरी भीड़ है |
− | उसकी धड़कनें | + | उसकी धड़कनें |
− | अलग-अलग गति से | + | अलग-अलग गति से |
− | बढ़ती-घटती रहती हैं | + | बढ़ती-घटती रहती हैं |
− | अकेले पहाड़ का | + | अकेले पहाड़ का ज़माना |
− | बीत गया | + | बीत गया |
− | अब हर ओर | + | अब हर ओर |
− | पहाड़ ही पहाड़ हैं। | + | पहाड़ ही पहाड़ हैं। |
− | '''3.''' | + | '''3.''' |
− | पहाड़ों पर रहने वाले लोग | + | पहाड़ों पर रहने वाले लोग |
− | पहाड़ों को पसंद नहीं करते | + | पहाड़ों को पसंद नहीं करते |
− | पहाड़ों के साथ | + | पहाड़ों के साथ |
− | हँस लेते हैं | + | हँस लेते हैं |
− | रो लेते हैं | + | रो लेते हैं |
− | सोचते हैं | + | सोचते हैं |
− | पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई | + | पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई |
− | बाकी भी गुज़र जाएगी। | + | बाकी भी गुज़र जाएगी। |
(रचनाकाल : 1988) | (रचनाकाल : 1988) | ||
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01:10, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
1.
पहाड़ को कठोर मत समझो
पहाड़ को नोचने पर
पहाड़ के आँसू बह आते हैं
सड़कें करवट बदल
चलते-चलते रुक जाती हैं
पहाड़ को
दूर से देखते हो तो
पहाड़ ऊँचा दिखता है
करीब आओ
पहाड़ तुम्हें ऊपर खींचेगा
पहाड़ के ज़ख्मी सीने में
रिसते धब्बे देख
चीखो मत
पहाड़ को नंगा करते वक़्त
तुमने सोचा न था
पहाड़ के जिस्म में भी
छिपे रहस्य हैं।
2.
इसलिए अब
अकेली चट्टान को
पहाड़ मत समझो
पहाड़ तो पूरी भीड़ है
उसकी धड़कनें
अलग-अलग गति से
बढ़ती-घटती रहती हैं
अकेले पहाड़ का ज़माना
बीत गया
अब हर ओर
पहाड़ ही पहाड़ हैं।
3.
पहाड़ों पर रहने वाले लोग
पहाड़ों को पसंद नहीं करते
पहाड़ों के साथ
हँस लेते हैं
रो लेते हैं
सोचते हैं
पहाड़ों पर आधी ज़िंदगी गुज़र गई
बाकी भी गुज़र जाएगी।
(रचनाकाल : 1988)