भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGeet}}
<poem>
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
:मिट्टी कि प्रतिमा
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,
:वह अपने घर में
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
:तरु तल निवासिनी!
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
:शरदेन्दु हासिनी।
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
:गीता प्रकाशिनी!
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
:जीवन विकासिनी।
रचनाकाल: जनवरी’ ४०
</poem>