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सूखा / एकांत श्रीवास्तव

132 bytes added, 19:08, 30 अप्रैल 2010
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>इस तरह मेला घूमना<br />हुआ इस बार<br />न बच्‍चे के लिए मिठाई<br />न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी<br />न नाच न सर्कस<br /><br />इस बार जेबों में<br />सिर्फ सिर्फ़ हाथ रहे<br />उसका खालीपन भरते<br /><br />इस बार मेले में<br />पहुंचने पहुँचने की ललक से पहले पहुंच गयी<br />पहुँच गईलौटने की थकान<br /><br />एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में<br />डूबती रही मेले की गूंज<br />गूँज<br />सिर्फ सिर्फ़ सूखा टहलता रहा<br />इस बार मेले में.<br />में।<br /poem>
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