{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / एकांत श्रीवास्तव }}{{KKCatKavita}}<Poem>इस तरह मेला घूमना<br />हुआ इस बार<br />न बच्चे के लिए मिठाई<br />न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी<br />न नाच न सर्कस<br /><br />इस बार जेबों में<br />सिर्फ हाथ रहे<br />उसका खालीपन भरते<br /><br />इस बार मेले में<br />पहुंचने की ललक से पहले पहुंच गयी<br />लौटने की थकान<br /><br />एक खाली कटोरे के सन्नाटे में<br />डूबती रही मेले की गूंज<br /><br />सिर्फ सूखा टहलता रहा<br />इस बार मेले में.<br /><br />
इस बार जेबों में
सिर्फ़ हाथ रहे
उसका खालीपन भरते
--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:49, 24 अप्रैल 2010 (UTC)इस बार मेले मेंपहुँचने की ललक से पहले पहुँच गईलौटने की थकान एक खाली कटोरे के सन्नाटे मेंडूबती रही मेले की गूँज सिर्फ़ सूखा टहलता रहाइस बार मेले में।</poem>