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{{KKRachna
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह=ग्राम्‍या / सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>अब आधा जल निश्चल, पीला, -<br>- आधा जल चंचल औ'औ’, नीला -<br>- :गीले तन पर मृदु संध्यातप<br>सिमटा रेशम पट सा ढीलाढीला। ... ... ... ... ऐसे सोने के साँझ प्रात, ऐसे चाँदी के दिवस रात, :ले जाती बहा कहाँ गंगा जीवन के युग क्षण,-- किसे ज्ञात!<br><br>
.....................<br><br>विश्रुत हिम पर्वत से निर्गत, किरणोज्वल चल कल ऊर्मि निरत, :यमुना, गोमती आदी से मिल होती यह सागर में परिणत।
ऐसे सोने के साँझ प्रातयह भौगोलिक गंगा परिचित,<br>ऐसे चाँदी के दिवस रातजिसके तट पर बहु नगर प्रथित,<br>ले जाती बहा कहाँ :इस जड़ गंगा<br>से मिली हुई जीवन के युग-क्षण - किसे ज्ञातजन गंगा एक और जीवित!<br><br>
विश्रुत हिम पर्वत से निर्गतवह विष्णुपदी, शिव मौलि स्रुता,<br>किरणोज्ज्वल चल कल उर्मि निरतवह भीष्म प्रसू औ’ जह्नु सुता,<br>यमुना गोमती आदी से मिल<br>:वह देव निम्नगा, स्वर्गंगा, होती यह सागर में परिणत।<br><br>वह सगर पुत्र तारिणी श्रुता।
यह भौगोलिक वह गंगा परिचित,<br>यह केवल छाया, जिसके तट पर बहु नगर प्रथितवह लोक चेतना, यह माया,<br>इस जड़ गंगा से मिली हुई<br>:वह आत्म वाहिनी ज्योति सरी, जन गंगा एक और जीवित!<br><br>यह भू पतिता, कंचुक काया।
वह विष्णुपदीगंगा जन मन से नि:सृत, शिवमौलि स्रुता,<br>वह भीष्म प्रसू औ' जह्न सुताजिसमें बहु बुदबुद युग नर्तित,<br>:वह देव निम्नगाआज तरंगित, स्वर्गंगा,<br>संसृति के वह सगर पुत्र तारिणी श्रुता।<br><br>मृत सैकत को करने प्लावित।
वह गंगादिशि दिशि का जन मत वाहित कर, यह केवल छाया,<br>वह लोक चेतनाबनी अकूल अतल सागर, यह माया,<br>:भर देगी दिशि पल पुलिनों में वह आत्मवाहिनी ज्योति सरीनव नव जीवन की मृद् उर्वर! ... ... ... ... ... अब नभ पर रेखा शशि शोभित,<br>यह भू पतितागंगा का जल श्यामल, कंचुक काया।<br><br>कम्पित, :लहरों पर चाँदी की किरणें करतीं प्रकाशमय कुछ अंकित!
वह गंगा जन मन से निरचनाकाल:सृत,<br>फ़रवरी’ ४० जिसमें बहु बुदबुद युग निर्तित,<br>वह आज तरंगित संसृति के<br>मृत सैकत को करने प्लावित।<br><br> दिशि दिशि का जन मन वाहित कर,<br>वह बनी अकूल अतल सागर,<br>भर देगी दिशि पल पुलिनों में<br>वह नव नव जीवन की मृदु उर्वर!<br><br> ........................<br><br> अब नभ पर रेखा शशि शोभित<br>गंगा का जल श्यामल कम्पित,<br>लहरों पर चाँदी की किरणें<br>करती प्रकाशमय कुछ अंकित!<br><br/poem>
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