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"बनज कुमार ‘बनज’" के अवतरणों में अंतर

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शायद तुमने बाँध लिया है ख़ुद को छायाओं के भय से,
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इस स्याही पीते जंगल में कोई चिन्गारी तो उछले ।
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रहे शारदा शीश पर, दे मुझको वरदान।
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गीत, गजल, दोहे लिखूं, मधुर सुनाऊं गान।
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हंस सवारी हाथ में, वीणा की झंकार,
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वर दे मां मैं कर सकूं, गीतों का श्रृंगार।
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मां शब्दों में तुम रहो, मेरी इतनी चाह,
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पल पल दिखलाती रहो, मुझे सृजन की राह।
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मां तेरी हो साधना, इस जीवन का मोल,
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तू मुझको देती रहे, शब्द सुमन अन्मोल।
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अधर तुम्हारे हो गये, बिना छुये ही लाल।
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लिया दिया कुछ भी नहीं कैसे हुआ कमाल।
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मां तेरा मैं लाड़ला, नित्य करूं गुणगान।
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नज र सदा नीची रहे, दूर रहे अभिमान।
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मां चरणों के दास को, विद्या दे भरपूर,
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मुझको अपने द्वार से, मत करना तू दूर।
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सुनना हो केवल सुनूं, वीणा की झंकार।
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चुनना हो केवल चुनूं, मैं तो मां का द्वार।
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मौन पराया हो गया, शब्द हुये साकार,
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नित्य सुनाती मां मुझे, वीणा की झंकार।
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मां मुझको कर वापसी, भूले बिसरे गीत,
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बिना शब्द के जिन्दगी, कैसे हो अभिनीत।
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23:11, 10 मई 2010 का अवतरण

बनज कुमार ’बनज’
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जन्म
निधन
उपनाम
जन्म स्थान जयपुर, राजस्थान, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
विविध
जीवन परिचय
बनज कुमार ’बनज’ / परिचय
कविता कोश पता
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