"वन्दना / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर
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शारदे आज यह वर दे | शारदे आज यह वर दे | ||
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तुझसी ही हे देवि अमर हो | तुझसी ही हे देवि अमर हो | ||
इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे | इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे | ||
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इसमें रंग भरा हो काला | इसमें रंग भरा हो काला | ||
किन्तु जगत में करे उजाला | किन्तु जगत में करे उजाला | ||
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वहाँ गिरे यह बनकर पाला | वहाँ गिरे यह बनकर पाला | ||
फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदे | फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदे | ||
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जैसी टेढ़ी अलकें काली | जैसी टेढ़ी अलकें काली | ||
मानों ऐंठी कोई ब्याली | मानों ऐंठी कोई ब्याली | ||
हो यह टेढ़े शब्दों वाली | हो यह टेढ़े शब्दों वाली | ||
किन्तु नहीं हो विष की प्याली | किन्तु नहीं हो विष की प्याली | ||
− | इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे | + | इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे |
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भरा रहे रत्नाकर इसमें | भरा रहे रत्नाकर इसमें | ||
रसका भर दे सागर इसमें | रसका भर दे सागर इसमें | ||
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मस्ती के हो आखर इसमें | मस्ती के हो आखर इसमें | ||
जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर दे | जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर दे | ||
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चूमे क्षितिज और अंबरको | चूमे क्षितिज और अंबरको | ||
नक्षत्रों के लोक प्रवरको | नक्षत्रों के लोक प्रवरको | ||
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छूले मानव के अन्तर को | छूले मानव के अन्तर को | ||
उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे | उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे | ||
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मूर्ख मनुज की वाह-वाह से | मूर्ख मनुज की वाह-वाह से | ||
बिना ह्रदयवाली निगाह से | बिना ह्रदयवाली निगाह से |
23:50, 12 मई 2010 के समय का अवतरण
शारदे आज यह वर दे
नैनों से भी तीखीतर हो
शिशुओं सी सर्वथा निडर हो
व्यंग-विनोद- हास का घर हो
तुझसी ही हे देवि अमर हो
इस निब-वालीको मैं जैसा चाहूँ -- वैसा कर दे
इसमें रंग भरा हो काला
किन्तु जगत में करे उजाला
जहाँ बनज हो रोनेवाला
वहाँ गिरे यह बनकर पाला
फाड़े यह पाखण्ड -- दंभके ताने हुए जो परदे
जैसी टेढ़ी अलकें काली
मानों ऐंठी कोई ब्याली
हो यह टेढ़े शब्दों वाली
किन्तु नहीं हो विष की प्याली
इससे सुधा-बूँद बरसा अधरों पर सबके धर दे
भरा रहे रत्नाकर इसमें
रसका भर दे सागर इसमें
पाएँ लोग चराचर इसमें
मस्ती के हो आखर इसमें
जग को करदे मादक, इसमें वह मादकता भर दे
चूमे क्षितिज और अंबरको
नक्षत्रों के लोक प्रवरको
करै पराजित यह निर्झर को
छूले मानव के अन्तर को
उड़े कल्पना के समीर पर इसको ऐसा करदे
मूर्ख मनुज की वाह-वाह से
बिना ह्रदयवाली निगाह से
पैसों की स्वादिष्ट चाह से
इन तीनों सागर अथाह से
इक्यावन नम्बरवाली यह पार पारकर कर दे