भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बसंत ऋतु / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बेढब बनारसी }} {{KKCatKavita}} <poem> आगया मधुमास आली दिवसभर व…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 11: | पंक्ति 11: | ||
और आधी रात तक तो | और आधी रात तक तो | ||
जागती है सास आली; आ गया मधुमास आली | जागती है सास आली; आ गया मधुमास आली | ||
+ | |||
जब कहा - मुझको दिखा दो | जब कहा - मुझको दिखा दो | ||
एक दिन सिनेमा भला तो; | एक दिन सिनेमा भला तो; | ||
बोल उठे संध्या समय | बोल उठे संध्या समय | ||
लगता हमारा क्लास आली; आ गया मधुमास आली | लगता हमारा क्लास आली; आ गया मधुमास आली | ||
+ | |||
ढ़ाक और कचनार फूले | ढ़ाक और कचनार फूले | ||
आम के भी बौर झूले | आम के भी बौर झूले | ||
रट रहे हैं किन्तु वह | रट रहे हैं किन्तु वह | ||
तद्धित-कृदंत-समास आली; आ गया मधुमास आली | तद्धित-कृदंत-समास आली; आ गया मधुमास आली | ||
+ | |||
'सेंट' माँगा; सोप माँगा, | 'सेंट' माँगा; सोप माँगा, | ||
ह्रदय को कुछ होप माँगा | ह्रदय को कुछ होप माँगा |
23:52, 12 मई 2010 का अवतरण
आगया मधुमास आली
दिवसभर वह पाठ पढ़ते
नित्य प्रातः हैं टहलते
और आधी रात तक तो
जागती है सास आली; आ गया मधुमास आली
जब कहा - मुझको दिखा दो
एक दिन सिनेमा भला तो;
बोल उठे संध्या समय
लगता हमारा क्लास आली; आ गया मधुमास आली
ढ़ाक और कचनार फूले
आम के भी बौर झूले
रट रहे हैं किन्तु वह
तद्धित-कृदंत-समास आली; आ गया मधुमास आली
'सेंट' माँगा; सोप माँगा,
ह्रदय को कुछ होप माँगा
हम यही कहते रहे --
हो जानी जब हम पास आली; आ गया मधुमास आली