भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मातृभूमि / मन्नन द्विवेदी गजपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
जन्म दिया माता-सा जिसने, किया सदा लालन-पालन। | जन्म दिया माता-सा जिसने, किया सदा लालन-पालन। | ||
जिसके मिट्टी जल से ही है, रचा गया हम सबका तन।। | जिसके मिट्टी जल से ही है, रचा गया हम सबका तन।। | ||
+ | |||
गिरिवर गण रक्षा करते हैं, उच्च उठा के शृंग महान। | गिरिवर गण रक्षा करते हैं, उच्च उठा के शृंग महान। | ||
जिसके लता द्रुमादिक करते, हमको अपनी छाया दान।। | जिसके लता द्रुमादिक करते, हमको अपनी छाया दान।। | ||
+ | |||
माता केवल बाल-काल में, निज अंकों में धरती है। | माता केवल बाल-काल में, निज अंकों में धरती है। | ||
हम अशक्त जब तलक तभी तक, पालन पोषण करती है।। | हम अशक्त जब तलक तभी तक, पालन पोषण करती है।। | ||
+ | |||
मातृभूमि करती है मेरा, लालन सदा मृत्यु पर्यन्त। | मातृभूमि करती है मेरा, लालन सदा मृत्यु पर्यन्त। | ||
जिसके दया प्रवाहों का नहि, होता सपने में भी अन्त।। | जिसके दया प्रवाहों का नहि, होता सपने में भी अन्त।। | ||
+ | |||
मर जाने पर कण देहों के, इसमें ही मिल जाते हैं। | मर जाने पर कण देहों के, इसमें ही मिल जाते हैं। | ||
हिन्दू जलते यवन इसाई, दफ़न इसी में पाते हैं।। | हिन्दू जलते यवन इसाई, दफ़न इसी में पाते हैं।। | ||
+ | |||
ऐसी मातृभूमि मेरी है, स्वर्गलोक से भी प्यारी। | ऐसी मातृभूमि मेरी है, स्वर्गलोक से भी प्यारी। | ||
जिसके पद कमलों पर मेरा, तन मन धन सब बलिहारी।। | जिसके पद कमलों पर मेरा, तन मन धन सब बलिहारी।। |
00:35, 17 मई 2010 के समय का अवतरण
जन्म दिया माता-सा जिसने, किया सदा लालन-पालन।
जिसके मिट्टी जल से ही है, रचा गया हम सबका तन।।
गिरिवर गण रक्षा करते हैं, उच्च उठा के शृंग महान।
जिसके लता द्रुमादिक करते, हमको अपनी छाया दान।।
माता केवल बाल-काल में, निज अंकों में धरती है।
हम अशक्त जब तलक तभी तक, पालन पोषण करती है।।
मातृभूमि करती है मेरा, लालन सदा मृत्यु पर्यन्त।
जिसके दया प्रवाहों का नहि, होता सपने में भी अन्त।।
मर जाने पर कण देहों के, इसमें ही मिल जाते हैं।
हिन्दू जलते यवन इसाई, दफ़न इसी में पाते हैं।।
ऐसी मातृभूमि मेरी है, स्वर्गलोक से भी प्यारी।
जिसके पद कमलों पर मेरा, तन मन धन सब बलिहारी।।
’कविता कौमुदी भाग दो’ में प्रकाशित