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"दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज मेरी माँ के थे / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर" के अवतरणों में अंतर
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− | दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज मेरी माँ के थे | + | दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज<ref>खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ</ref> मेरी माँ के थे |
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे | उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे | ||
− | हरेक सिम्त | + | हरेक सिम्त<ref>दिशा</ref> समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ<ref>सफल</ref> |
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे | वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे | ||
− | अहल-ऐ-जहाँ ओ ये पेंच-ओ-ख़म का दम | + | अहल-ऐ-जहाँ<ref>दुनियावाले</ref>ओ ये पेंच-ओ-ख़म<ref>दाँव-पेंच</ref> का दम |
− | मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ के थे | + | मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ<ref>जुलूस</ref> के थे |
− | जब तक वो न थी करीब,तो सब थे रकीब | + | जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब |
− | हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ के थे | + | हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ<ref>डूबता सूरज</ref> के थे |
− | आज तो दे रखीं हैं सौ | + | आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर |
− | कल तक | + | कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे |
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10:27, 17 मई 2010 के समय का अवतरण
दस्त-ऐ-ज़मील-ऐ-तरबखेज<ref>खुशियाँ देने वाले कोमल हाथ</ref> मेरी माँ के थे
उन हरेक पल वो साथ जो मेरे इम्तहाँ के थे
हरेक सिम्त<ref>दिशा</ref> समेट दी कि हो जाऊँ कामराँ<ref>सफल</ref>
वगरना कल तक सब कहाँ के हम कहाँ के थे
अहल-ऐ-जहाँ<ref>दुनियावाले</ref>ओ ये पेंच-ओ-ख़म<ref>दाँव-पेंच</ref> का दम
मुझे गिराने वाले सब मेरे ही कारवाँ<ref>जुलूस</ref> के थे
जब तक वो न थी करीब, तो सब थे रकीब
हम तब तक उम्मीदवार खुर-ऐ-गलताँ<ref>डूबता सूरज</ref> के थे
आज तो दे रखीं हैं सौ दुकानें किराए पर
कल तक ख़रीदार खुद हम अपनी दुकाँ के थे
शब्दार्थ
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