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ताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही <br>
तुम को इस वादी-ए-रन्गीं रंगीं से अक़ीदत ही सही<br><br>
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से! <br><br>
ये इमारात-ओ-मक़ाबिर ये फ़सीलें, ये हिसार <br>
मुतल-क़ुल्हुक्म शहनशाहों की अज़मत के सुतूँ <br>
दामन-ए-दहर पे उस रन्ग रंग की गुलकारी है <br>
जिस में शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ <br><br>
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