भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जन्म भूमि / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्र…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
 
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!
 
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!
पंक्ति 14: पंक्ति 15:
 
:जिसे राम लक्ष्मण औ’ सीता
 
:जिसे राम लक्ष्मण औ’ सीता
 
:सजा गए पद धूलि पुनीता,
 
:सजा गए पद धूलि पुनीता,
:जहाँ कॄष्ण ने गाई गीता
+
:जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
 
:बजा अमर प्राणों में वंशी!
 
:बजा अमर प्राणों में वंशी!
  
पंक्ति 23: पंक्ति 24:
  
 
:शांति निकेतन जहाँ तपोवन
 
:शांति निकेतन जहाँ तपोवन
:ध्यानावस्थित हो ॠषि मुनि गण
+
:ध्यानावस्थित हो ऋषि मुनि गण
 
:चिद् नभ में करते थे विचरण,
 
:चिद् नभ में करते थे विचरण,
 
:यहाँ सत्य की किरणें बरसीं!
 
:यहाँ सत्य की किरणें बरसीं!

17:22, 2 जून 2010 के समय का अवतरण

जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!
जिसका गौरव भाल हिमाचल
स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल
ज्योति मथित गंगा यमुना जल,
बह जन जन के हृदय में बसी!

जिसे राम लक्ष्मण औ’ सीता
सजा गए पद धूलि पुनीता,
जहाँ कृष्ण ने गाई गीता
बजा अमर प्राणों में वंशी!

सीता सावित्री सी नारी
उतरीं आभा देही प्यारी,
शिला बनी तापस सुकुमारी
जड़ता बनी चेतना सरसी!

शांति निकेतन जहाँ तपोवन
ध्यानावस्थित हो ऋषि मुनि गण
चिद् नभ में करते थे विचरण,
यहाँ सत्य की किरणें बरसीं!

आज युद्ध पीड़ित जग जीवन
पुनः करेगा मंत्रोच्चारण
वह वसुधैव जहाँ कुटुम्बकम
उस मुख पर प्रीति विलसी!
जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी!