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लेखक: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=ग़ालिब]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:गा़लिब]]<poem>हर एक बात पे कहते हो तुम कि 'तू क्या है' तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू<ref>बातचीत का तरीका</ref> क्या है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*न शो'ले<ref>ज्वाला</ref> में ये करिश्मा न बर्क़<ref>बिज़ली</ref> में ये अदा कोई बताओ कि वो शोखे-तुंद-ख़ू<ref>शरारती-अकड़ वाला</ref> क्या है
हर एक बात पे कहते हो तुम ये रश्क है कि तू क्या वो होता है हमसुख़न<brref>अकसर बातें करना</ref> तुमसे तुम्हीं कहो के ये अंदाज़वर्ना ख़ौफ़-ए-गुफ़्तगू क्या है बद-आमोज़िए-अ़दू<brref>दुश्मन के सिखाने-पढ़ाने का डर<br/ref>क्या है
न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन<brref>चोला</ref>कोई बताओ कि वो शोख़हमारी जैब को अब हाजत-ए-तुंदख़ू क्या है रफ़ू<brref>रफ़ू करने की जरूरत<br/ref>क्या है
ये रश्क जला है कि वो होता है हमसुख़न हमसे <br>जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अद क्या है कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू<brref>तलाश<br/ref>क्या है
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन रगों में दौड़ने-फिरने के हम नहीं क़ायल<brref>प्रभावित होना</ref>हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या है <br><br>
जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त<brref>स्वर्ग</ref> अज़ीज़<ref>प्रिय</ref>कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है सिवाए वादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू<brref>गुलाबी कस्तूरी-सुगंधित शराब<br/ref>क्या है
रगों में दौड़ते फिरने पियूँ शराब अगर ख़ुम<ref>शराब के हम नहीं क़ायल ढ़ोल<br/ref>भी देख लूँ दो-चार जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू<brref>बोतल, प्याला, मधु-पात्र और मधु-कलश<br/ref>क्या है
वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़ <br>सिवाए बादारही न ताक़त-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है गुफ़्तार<brref>बोलने की ताकत<br/ref>और अगर हो भी तो किस उमीद<ref>उम्मीद</ref> पे कहिए कि आरज़ू क्या है
पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार <br>ये शीशा-ओ-क़दाह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या हुआ है शह का मुसाहिब<brref>ऱाजा का दरबारी<br/refरही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी <br>तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है <br><br> बना है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता <br>वरना वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू <ref>प्रतिष्ठा</ref> क्या है <br><br/poem>{{KKMeaning}}