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एक सवाल है
जो रोज रोज़ मुझसे मिलता हैकोई खुशी ख़ुशी नहीं होती
मुझे उससे मिलकर
मुझे खोज लेता है
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
या जैसे कि ‘वह’ मैं खुद हूंख़ुद हूँ
बस यही पूछता है
जीवन ऐसा क्यों मिला
जीते हुए जिसे
हर पल होता रहे गिला
रचनाकाल : 1998
<POem>