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उधेड़-बुन / मुकेश मानस

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<poem>
'''उधेड़-बुन'''
 
ये कैसा नरक है
जिसमें हम जी रहे हैं
जो बार-बार आता है
'''रचनाकारचनाकाल:1990'''
<poem>
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