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|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
|संग्रह= गुंजन / सुमित्रानंदन पंत; पल्लविनी / सुमित्रानंदन पंत
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<poem>
वन-वन, उपवन--
छाया उन्मन-उन्मन गुंजन,
नव-वय के अलियों का गुंजन!
वनरुपहले, सुनहले आम्र- वन उपवन<br>बौर, छाया उन्मननीले, पीले औ ताम्र भौंर, रे गंध-अंध हो ठौर-ठौर :उड़ पाँति-पाँति में चिर- उन्मन गुंजन<br>नव वय :करते मधु के अलियों का वन में गुंजन !<br><br>
रुपहले, सुनहले, आम्र, मौर,<br>वन के विटपों की डाल-डाल नीले, पीले औ ताम्र भौंरकोमल कलियों से लाल-लाल,<br>रे गंधफैली नव-गंध हो ठौरमधु की रूप-ठौर<br>ज्वाल, उड़ पाँति:जल-पाँति में चिर जल प्राणों के अलि उन्मन<br>:करते मधु के वन में स्पन्दन, करते-गुंजन !<br><br>
वन अब फैला फूलों में विकास, मुकुलों के विटपों की डाल-डाल<br>उर में मदिर वास, कोमल कलियों अस्थिर सौरभ से लालमलय-लालश्वास,<br>फैली नव :जीवन-मधु की रूप ज्वाल,<br>-संचय को उन्मन जल-जल :करते प्राणों के अलि उन्मन<br>करते स्पन्दन, भरते-गुंजन !<br><br>
अब फैला फूलों में विकास,<br>रचनाकाल: जनवरी’ 1932मुकुलों के उर में मदिर वास,<br/poem>अस्थिर सौरभ से मलय-श्वास,<br>जीवन-मधु-संचय को उन्मन<br>करते प्राणों के अलि गुंजन ! <br><br> (जनवरी, 1932)
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