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"चश्मे-जहाँ से हालते अस्ली छिपी नहीं / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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चश्मे जहाँ से हालते असली नहीं छुपती
अख्बार में जो चाहिए वह छाप दीजिए
दावा बहुत बड़ा है रियाजी मे आपको
तूले शबे फिराक को तो नाप दीजिए
सुनते नहीं हैं शेख नई रोशनी की बात
इंजन कि उनके कान में अब भाप दीजिए
जिस बुत के दर पे गौर से अकबर ने कह दिया
जार ही मैं देने लाया हूँ जान आप दीजिए