Changes

Added missing sher
कुर्रा-ए-फाल मेरे नाम का अक्सर निकला
था जिन्हे जों जोम वोह वो दरया भी मुझी मैं डूबे मैं के सेहरा सहरा नज़र आता था समंदर निकला
मैं ने उस जान-ए-बहारां को बुहत याद किया
शहर वल्लों की मोहब्बत का मैं कायल हूँ मगर
मैं ने जिस हाथ को चूमा वोही खंजर निकला
 
तू यहीं हार गया था मेरे बुज़दिल दुश्मन
मुझसे तनहा के मुक़ाबिल तेरा लश्कर निकला
 
मैं के सहरा-ए-मुहब्बत का मुसाफ़िर हूँ 'फ़राज़'
एक झोंका था कि ख़ुशबू के सफ़र पर निकला
</poem>
25
edits