Changes

<poem>
बारबार अंतिम प्रणाम करता तुमको मनहे भारत की आत्मा, तुम कब थे भंगुर तन?व्याप्त हो गए जन मन में तुम आज महात्मन्नव प्रकाश बन, आलोकित कर नव जग-जीवन!पार कर चुके थे निश्वय तुम जन्म औ’ निधनइसीलिए बन सके आज तुम दिव्य जागरण!श्रद्धानत अंतिम प्रणाम करता तुमको मनहे भारत की आत्मा, नव जीवन के जीवन!
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits