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"कानपूर–1 / वीरेन डंगवाल" के अवतरणों में अंतर

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प्रेम तुझे छोड़ेगा नहीं !
 
प्रेम तुझे छोड़ेगा नहीं !
वह तुझे खुश और तबाह करेगा.
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सातवीं मंज़िल की बालकनी से देखता हूँ
सातवीं मंजिल की बालकनी से देखता हूं
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नीचे आम के धूल सने पोढ़े पेड़ पर  
 
नीचे आम के धूल सने पोढ़े पेड़ पर  
उतरा है गमकता हुआ वसन्‍त        किंचित शर्माता.
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उतरा है गमकता हुआ वसन्‍त        किंचित शर्माता
  
 
बड़े-बड़े बैंजली-
 
बड़े-बड़े बैंजली-
  
 
पीले-लाल-सफेद डहेलिया  
 
पीले-लाल-सफेद डहेलिया  
फूलने लगे हैं छोटे-छोटे गमलों में भी.
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फूलने लगे हैं छोटे-छोटे गमलों में भी
  
निर्जन दसवीं मंजिल की मुंडेर पर  
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निर्जन दसवीं मंज़िल की मुंडेर पर  
 
मधुमक्खियों ने चालू कर दिया है  
 
मधुमक्खियों ने चालू कर दिया है  
अपना देसी कारखाना.
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अपना देसी कारखाना
  
 
सुबह होते ही उनके झुण्‍ड लग जाते हैं काम पर  
 
सुबह होते ही उनके झुण्‍ड लग जाते हैं काम पर  
 
कोमल धूप और हवा में अपना वह  
 
कोमल धूप और हवा में अपना वह  
 
समवेत मद्धिम संगीत बिखेरते  
 
समवेत मद्धिम संगीत बिखेरते  
जिसे सुनने के लिए तेज कान ही नहीं  
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जिसे सुनने के लिए तेज़ कान ही नहीं  
 
वसन्‍त से भरा प्रतीक्षारत हृदय भी चाहिए  
 
वसन्‍त से भरा प्रतीक्षारत हृदय भी चाहिए  
आंसुओं से डब-डब हैं मेरी चश्‍मा मढ़ी आंखें
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आँसुओं से डब-डब हैं मेरी चश्‍मा मढ़ी आँखें
  
इस उम्र और इस सदी में.
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इस उम्र और इस सदी में
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13:25, 25 जून 2010 के समय का अवतरण


प्रेम तुझे छोड़ेगा नहीं !
वह तुझे खुश और तबाह करेगा।

सातवीं मंज़िल की बालकनी से देखता हूँ

नीचे आम के धूल सने पोढ़े पेड़ पर
उतरा है गमकता हुआ वसन्‍त किंचित शर्माता ।

बड़े-बड़े बैंजली-

पीले-लाल-सफेद डहेलिया
फूलने लगे हैं छोटे-छोटे गमलों में भी ।

निर्जन दसवीं मंज़िल की मुंडेर पर
मधुमक्खियों ने चालू कर दिया है
अपना देसी कारखाना ।

सुबह होते ही उनके झुण्‍ड लग जाते हैं काम पर
कोमल धूप और हवा में अपना वह
समवेत मद्धिम संगीत बिखेरते
जिसे सुनने के लिए तेज़ कान ही नहीं
वसन्‍त से भरा प्रतीक्षारत हृदय भी चाहिए
आँसुओं से डब-डब हैं मेरी चश्‍मा मढ़ी आँखें

इस उम्र और इस सदी में ।