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घन-कुरंग / नागार्जुन

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[[नागार्जुन]]{{KKGlobal}}[[कवितायें]]{{KKRachna[[|रचनाकार=नागार्जुन]] }}***********************************{{KKCatNavgeet}}<poem>नभ में चौकडियां चौकडियाँ भरें भले 
शिशु घन-कुरंग
 खिलवाड खिलवाड़ देर तक करें भले 
शिशु घन-कुरंग
 लो, आपस में गुथ गये गए खूब 
शिशु घन-कुरंग
 लो, घटा जल में गये गए डूब 
शिशु घन-कुरंग
 
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
 
शिशु घन-कुरंग
 लो, कब की सुधियां सुधियाँ जगीं, आह 
शिशु घन-कुरंग
 पुरवा सिह्कीसिहकी, फिर दीख गयेगएशिशु घन-कुरंगशशि से शरमाना सीख गए
शिशु घन-कुरंग
शशि से शरमाना सीख गये
शिशु घन-कुरंग
''१९६४ में लिखी गईलिखित''</poem>
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