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"काँटे आए कभी गुलाब आए.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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आए काँटे, कभी गुलाब आए  
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काँटे आए कभी गुलाब आए
 
जो भी आए वो बेहिसाब आए  
 
जो भी आए वो बेहिसाब आए  
  
रंग उड़ जाए उनके चेहरे का  
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रंग उड़ जाए उनके चेहरे का  
 
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref>  आए  
 
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref>  आए  
  
अब्र दाना.ई<ref>समझदारी</ref> का हो फिर ओझल
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काम आए न कोई  चतुराई
 
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए  
 
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए  
  
दोस्त बन कर मिले या दुश्मन हो  
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दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
सामने जब  हो, बेनक़ाब आए  
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सामने मेरे, बेनक़ाब आए  
  
घर की छत में दरार जब हो पड़ी
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घर की छत में दरार है “श्रद्धा”
 
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए
 
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए
 
ऐसे न लबकुशाई की<ref>होंठ खोले</ref> 'श्रद्धा'
 
मान बातों का हो, जवाब आए
 
 
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11:14, 29 जून 2010 का अवतरण

काँटे आए कभी गुलाब आए
जो भी आए वो बेहिसाब आए

रंग उड़ जाए उनके चेहरे का
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए

काम आए न कोई चतुराई
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए

दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
सामने मेरे, बेनक़ाब आए

घर की छत में दरार है “श्रद्धा”
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए

शब्दार्थ
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