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"मैं उन्हें छेड़ूँ और वो / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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20:14, 27 जनवरी 2008 का अवतरण
मैं उन्हें छेड़ूँ और कुछ न कहें
चल निकलते जो मय पिये होते
क़हर हो या बला हो, जो कुछ हो
काश के तुम मेरे लिये होते
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या रब कई दिये होते
आ ही जाता वो राह पर "ग़ालिब"
कोई दिन और भी जिये होते