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वातावरण / त्रिलोचन
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16:06, 12 जुलाई 2010
बाँहें इधर उधर फैलाए राह में
अत्र तत्र सर्वत्र शीत का
जोर
ज़ोर
है ।
</poem>
अनिल जनविजय
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