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लंबी कविता की पाण्डुलिपि / सुनील गंगोपाध्याय
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14:23, 16 जुलाई 2010
अरण्य के साथ एक समान्तराल अरण्य
दोपहर की निर्जनता में दूसरी एक निर्जनता
मुझे
वििस्मत
विस्मित
कर देता हैकभी-कभी बहुत
वििस्मत
विस्मित
कर देता है,
प्यार के मुखमण्डल को घेरे हुए है एक दूसरा प्यार
गहरी सांस के पड़ोस में एक और गहरी सांस
अनिल जनविजय
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