"पलायन / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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− | माथे पर बर्तानी बलें दे- | + | माथे पर बर्तानी बलें दे-देकर |
− | अपनी फ्रेंच | + | अपनी फ्रेंच दाढ़ीसे |
चेहरे को महिमामंडित करता रहा | चेहरे को महिमामंडित करता रहा | ||
आम आदमी से | आम आदमी से | ||
चित्तरंजक पलायन के | चित्तरंजक पलायन के | ||
− | सारगर्भित | + | सारगर्भित प्रयास में, |
घर से बेघर न होने की | घर से बेघर न होने की | ||
अंतहीन आपाधापी में, | अंतहीन आपाधापी में, | ||
− | वह 'होने' का सबूत ढूंढता रहा | + | वह 'होने' का सबूत ढूंढता रहा, |
आईन्दा आम आदमी न बने रहने | आईन्दा आम आदमी न बने रहने | ||
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छिटककर, बहककर | छिटककर, बहककर | ||
नुस्खे ही नुस्खे तलाशता रहा | नुस्खे ही नुस्खे तलाशता रहा | ||
− | विदेशी प्रजाति के सामान | + | विदेशी प्रजाति के सामान मोलता रहा |
'महान' विदेशियों के परित्यक्त जीन्स-पैंट, | 'महान' विदेशियों के परित्यक्त जीन्स-पैंट, | ||
ड्राइंगरूम के लिये इम्पोर्टड गुल्दस्ते, | ड्राइंगरूम के लिये इम्पोर्टड गुल्दस्ते, | ||
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तौलता रहा | तौलता रहा | ||
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बेदम होने तक | बेदम होने तक | ||
− | वाह | + | वाह निचोड़-निचोड़ |
संभावनाएं तलाशता रहा | संभावनाएं तलाशता रहा | ||
पछता-पछता भागता रहा | पछता-पछता भागता रहा |
13:21, 19 जुलाई 2010 का अवतरण
पलायन
आम आदमी बने रहने की कसक
और उससे पलायन की अथक
कमरतोड़ पसीनेदार मेहनत के बीच
वह आदमी ही बना रहा
जुबान और जूते ही घिसता रहा
अमरीकी स्टाइल में
कंधे उचका-उचका
सिर हिलाता रहा
माथे पर बर्तानी बलें दे-देकर
अपनी फ्रेंच दाढ़ीसे
चेहरे को महिमामंडित करता रहा
आम आदमी से
चित्तरंजक पलायन के
सारगर्भित प्रयास में,
घर से बेघर न होने की
अंतहीन आपाधापी में,
वह 'होने' का सबूत ढूंढता रहा,
आईन्दा आम आदमी न बने रहने
के हांफते जुनून में
जिंदगी के खिलाफ
मौत और मात से
जूझता, जूझता
जूझता रहा...
इस क्रांतिकारी जूझन में
उसे देश-निकाला मिल गया,
वह संस्कृतियों से
शिष्ट-श्लिष्ट रीतियों से
धर्म से, दर्शन से
बुद्ध से, गांधी से
गेहूं से, गुलाब से
वक़्त से, इन्सान से
दिल से
दिमाग से
बाहर हो गया
बाहर हो गया
बाहर हो गया...
बाहरीपन के हविश में
वह आजीवन
युग से, राष्ट्र से, जमीन से
छिटककर, बहककर
नुस्खे ही नुस्खे तलाशता रहा
विदेशी प्रजाति के सामान मोलता रहा
'महान' विदेशियों के परित्यक्त जीन्स-पैंट,
ड्राइंगरूम के लिये इम्पोर्टड गुल्दस्ते,
आयातित टोपियां, कलम और घड़ियाँ
दैहिक-दैविक आस्तियां
तौलता रहा
मोलता रहा
बेदम होने तक
वाह निचोड़-निचोड़
संभावनाएं तलाशता रहा
पछता-पछता भागता रहा
जोंक-सरीखे आदमी से
शब्दकोश का, समाज का
ज़लील शब्द है--'आम आदमी'
जिससे अलंकृत होने पर
वह फुंफकारता है
भौंकता है, गुर्राता है
आंसू और अंगारे बरसाता है
जान की बाजी लगा देता है.