"एक नदी यह भी / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | वहां लोग गुत्थम-गुत्थ बह रहे हैं | ||
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+ | संस्कृतियों के कल्पतरुओं का कहीं अता-पता नहीं है, | ||
+ | आख़िर, जिन तरुओं की जड़ों में दीमक लग गए हों | ||
+ | उनके बचने की उम्मीद कैसे की जा सकती है? | ||
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+ | नवपतन और नवविनाश के खाद भी न बन पाए-- | ||
+ | उन विषैले, पुष्पहीन-फलहीन पौधों के, | ||
+ | जिन्हें छूना तो घातक है ही | ||
+ | देखने-सूंघने भर से काँटे चुभ जाते हैं | ||
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+ | लोग-बाग़ बहते रहने के उन्माद में | ||
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+ | सचमुच, मिथक बन चुकी नदियों के | ||
+ | कंकाल में बहने लगे हैं | ||
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+ | सच, असंख्य '''धारवियाँ''' | ||
+ | गंगा-जमुना की कंकाली पिंजर में | ||
+ | आरम्भ से अंत तक प्रवाहमान हैं | ||
+ | जो कुछ यूँ लगता है कि जैसे | ||
+ | बूढ़ी लाशों के साथ व्यभिचार किया जा रहा हो | ||
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+ | इन तरलजनों की बहते रहने की इच्छा ही | ||
+ | चला रही है शहरी रेला, | ||
+ | जहाँ धक्कमपेल दिशाहीन चलते जाना | ||
+ | हर पल कुछ इंच आगे या पीछे विस्थापित होना | ||
+ | और तालियाँ बजाकर खुद का स्वागत करना | ||
+ | यही हमारी नियति है। | ||
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+ | *'''धारवी''' मुम्बई स्थित एशिया की सबसे बड़ी स्लम कालोनी है. | ||
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13:55, 19 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
एक नदी यह भी
जिन राजमार्गों, राजवीथियों पर
सभ्यताओं के फलने-फूलने पर
सूर्य पूरे दिन उत्सव मनाता था
चन्द्रमा अलमस्त
चांदनी का सरगम बजाता था,
वहां लोग गुत्थम-गुत्थ बह रहे हैं
तरल बहते लोगों से सड़ांध उठ रही है
संस्कृतियों के कल्पतरुओं का कहीं अता-पता नहीं है,
आख़िर, जिन तरुओं की जड़ों में दीमक लग गए हों
उनके बचने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
दु:ख है की उनके अवशेष
नवपतन और नवविनाश के खाद भी न बन पाए--
उन विषैले, पुष्पहीन-फलहीन पौधों के,
जिन्हें छूना तो घातक है ही
देखने-सूंघने भर से काँटे चुभ जाते हैं
लोग-बाग़ बहते रहने के उन्माद में
भूल जाते हैं कि
वे पर्वतीय सड़कों से उतरकर
सैकड़ों-हज़ारों गज नीचे
सचमुच, मिथक बन चुकी नदियों के
कंकाल में बहने लगे हैं
सच, असंख्य धारवियाँ
गंगा-जमुना की कंकाली पिंजर में
आरम्भ से अंत तक प्रवाहमान हैं
जो कुछ यूँ लगता है कि जैसे
बूढ़ी लाशों के साथ व्यभिचार किया जा रहा हो
इन तरलजनों की बहते रहने की इच्छा ही
चला रही है शहरी रेला,
जहाँ धक्कमपेल दिशाहीन चलते जाना
हर पल कुछ इंच आगे या पीछे विस्थापित होना
और तालियाँ बजाकर खुद का स्वागत करना
यही हमारी नियति है।
- धारवी मुम्बई स्थित एशिया की सबसे बड़ी स्लम कालोनी है.