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"उल्टे हुए पड़े को देख कर / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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'''अनुवाद : नीरज दइया''' | '''अनुवाद : नीरज दइया''' | ||
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09:14, 20 जुलाई 2010 का अवतरण
मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं
यह सोचने वाला पेड़
आँधी के थपेड़ों से
उलट गया ज़मीन पर
कितने दिन रहेगा
तना हुआ मेरा पेड़-रूपी बदन ?
रोज़ चलती है
यहाँ अभावों की आँधी
धीरे-धीरे काटता है
जड़ों को जीवन
अब
यह गर्व फिजूल
मेरी जड़ें
ज़मीन में कितनी गहरी हैं ?
अनुवाद : नीरज दइया