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"गुड़िया-9 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>वैसे तो वह चुप ही रहती है कहती कुछ भी नहीं समझने वाले समझ जाते है…)
 
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(कोई अंतर नहीं)

22:43, 22 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

वैसे तो वह
चुप ही रहती है
कहती कुछ भी नहीं
समझने वाले
समझ जाते हैं

उस के दुख में
उसे बहलाते हैं
फुसलाते हैं
और वह पगली
बहल जाती है !