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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे |संग्रह=}}‎[[Category:संस्कृत]]{{KKCatKavita‎}}<Poem>रजनी व्यतीता भवने सभीता .
एकाकिनी गृहे गहनान्धकारे मग्नाहमासम् क्लेशे अपारे निद्रां न नीता . रजनी व्यतीता ।।
कामेन मुग्धा विरहाग्नि दग्धा रात्रिर्समस्ता शान्तिर्न लब्धा नयनाश्रु पीता।पीता । रजनी व्यतीता ।।
आगतो न कन्तः आगतो बसन्तः मम वेदनायाः दृश्यते न अन्तः युवता अतीता । रजनी व्यतीता।।व्यतीता ।।</poem>
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