भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओसकण और जीवन / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (ओसकण और जीवन/ अशोक लव का नाम बदलकर ओसकण और जीवन / अशोक लव कर दिया गया है)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:26, 9 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

मृदुल पंखुड़ियों पर
सोए ओसकण
भोर की शीतल हवा के गीत सुन
झूमने लगे

अरुणिम रश्मियों का प्रकाश पा
झिलमिला उठे

हौले से उतार उन्हें
हथेलियों पर
मन ने चाहा कर लेना बंदी उन्हें
मुठ्ठियों में

ओसकण कहाँ रह पाते हैं बंदी!
सूर्या की तपन का स्पर्श पाते ही
हो जाते हैं विलुप्त

जीवन!
तुम भी कहाँ रह पाते हो बंदी
मुठ्ठियों में?
कब फिसल जाते हो
पता ही नहीं चलता