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किसकी तसल्ली पर मैं अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे, देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे
जब से गया वो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में, बालकनी के फ़ूल भी सूखे -सूखे हैं और महकना उतरना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब गया है खिड़की में महताब<ref>चाँद</ref> मिरे
आस के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद<ref>देखने कोदीदार,देखना</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
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