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गाली / मनोज श्रीवास्तव

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''' गाली '''
 
शब्द
जो लम्बे समय तक
परित्यक्त रहते हैं,
हमारे सामाजिक शब्दकोश में
गाली बन जाते हैं
 
मैंने अपनी उम्र भर
एक ऐसे ही अभागे शब्द को
आदमी और समाज से
बहिष्कृत होते पाया है
 
जब कभी मैंने
'ब्रह्मचर्य' को
परिभाषित मांगा है,
हर दस-वर्षीय लड़की ने
मुंह बिचकाकर
मुझे सरेआम
दकियानूस पुकारा है.