"नज़्म मासूम सवाल सवाल/ आदिल रशीद" के अवतरणों में अंतर
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ईश्वर ने राजा और रंक दोनों को जो चीज़ एक सामान दी है है वो है ममता ......आदिल रशीद | ईश्वर ने राजा और रंक दोनों को जो चीज़ एक सामान दी है है वो है ममता ......आदिल रशीद | ||
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हम जो भी बात चीत घर में करते हैं हमारे बच्चे उनको सुनते हैं और कभी कभी ऐसे ऐसे सवाल कर देते हैं जिनका जवाब हम नहीं दे पाते या जिनका हम जवाब जानते हुए भी देना नहीं चाहते मेरी ये नज़्म मेरी सब से छोटी बेटी अरनी सहर के अचानक किये गए ऐसे ही एक मासूम सवाल के बाद मेरे दिल मे उठे भावुकता के पलों की है ....आदिल रशीद | हम जो भी बात चीत घर में करते हैं हमारे बच्चे उनको सुनते हैं और कभी कभी ऐसे ऐसे सवाल कर देते हैं जिनका जवाब हम नहीं दे पाते या जिनका हम जवाब जानते हुए भी देना नहीं चाहते मेरी ये नज़्म मेरी सब से छोटी बेटी अरनी सहर के अचानक किये गए ऐसे ही एक मासूम सवाल के बाद मेरे दिल मे उठे भावुकता के पलों की है ....आदिल रशीद | ||
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कहा ये मैं ने के प्यारी बेटी | कहा ये मैं ने के प्यारी बेटी | ||
− | ये लफ्ज़ मुहमल <ref>जिसको तर्क कर दिया जाए जिसका प्रयोग न किया जाये,बेकार फ़िज़ूल,बे मआनी,जिसका कोई अर्थ न हो, | + | ये लफ्ज़ मुहमल<ref>जिसको तर्क कर दिया जाए जिसका प्रयोग न किया जाये,बेकार फ़िज़ूल,बे मआनी,जिसका कोई अर्थ न हो,</ref >है तुम न पढना |
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तुम्हे तो बस है ख़ुशी ही पढना | तुम्हे तो बस है ख़ुशी ही पढना | ||
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ये लफ्ज़ बच्चे नहीं हैं पढ़ते | ये लफ्ज़ बच्चे नहीं हैं पढ़ते | ||
− | ये लफ्ज़ पापा के वास्ते है | + | ये लफ्ज़ पापा के वास्ते है |
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− | वो मुतमईन<ref> संतुष्ट, | + | वो मुतमईन<ref>संतुष्ट,</ref>हो के सो गई जब |
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दुआ की मैं ने ए मेरे मौला | दुआ की मैं ने ए मेरे मौला | ||
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तू ऐसे लफ़्ज़ों को मौत दे दे | तू ऐसे लफ़्ज़ों को मौत दे दे | ||
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के इस जहाँ की सभी किताबों | के इस जहाँ की सभी किताबों | ||
− | हर इक लुगत<ref> | + | हर इक लुगत<ref>शब्द कोष डिक्शनरी</ref> से मैं नोच डालूं |
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− | </ref> से मैं नोच डालूं | + | |
खुरच दूँ उनको मिटा दूँ उनको | खुरच दूँ उनको मिटा दूँ उनको |
19:31, 15 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
ईश्वर ने राजा और रंक दोनों को जो चीज़ एक सामान दी है है वो है ममता ......आदिल रशीद
हम जो भी बात चीत घर में करते हैं हमारे बच्चे उनको सुनते हैं और कभी कभी ऐसे ऐसे सवाल कर देते हैं जिनका जवाब हम नहीं दे पाते या जिनका हम जवाब जानते हुए भी देना नहीं चाहते मेरी ये नज़्म मेरी सब से छोटी बेटी अरनी सहर के अचानक किये गए ऐसे ही एक मासूम सवाल के बाद मेरे दिल मे उठे भावुकता के पलों की है ....आदिल रशीद
नज़्म मासूम सवाल सवाल
वो मेरी मासूम प्यारी बेटी
है उम्र जिसकी के छ बरस की
ये पूछ बैठी बताओ पापा
जो आप अम्मी से कह रहे थे
जो गुफ्तुगू आप कर रहे थे
के ज़िन्दगी में बहुत से ग़म हैं
बताओ कहते है "ग़म" किसे हम?
कहाँ मिलेंगे हमें भी ला दो?
सवाल पर सकपका गया मैं
जवाब सोचा तो काँप उठ्ठा
कहा ये मैं ने के प्यारी बेटी
ये लफ्ज़ मुहमल<ref>जिसको तर्क कर दिया जाए जिसका प्रयोग न किया जाये,बेकार फ़िज़ूल,बे मआनी,जिसका कोई अर्थ न हो,</ref >है तुम न पढना
तुम्हे तो बस है ख़ुशी ही पढना
ये लफ्ज़ बच्चे नहीं हैं पढ़ते
ये लफ्ज़ पापा के वास्ते है
वो मुतमईन<ref>संतुष्ट,</ref>हो के सो गई जब
दुआ की मैं ने ए मेरे मौला
ए मेरे मालिक ए मेरे खालिक<ref>मालिक,प्रभु,ईश्वर</ref>
तू ऐसे लफ़्ज़ों को मौत दे दे
मआनी जिसके के रंजो गम हैं
न पढ़ सके ताके कोई बच्चा
न जान पाए वो उनके मतलब
नहीं तो फिर इख्तियार दे दे
के इस जहाँ की सभी किताबों
हर इक लुगत<ref>शब्द कोष डिक्शनरी</ref> से मैं नोच डालूं
खुरच दूँ उनको मिटा दूँ उनको
जहाँ -जहाँ पर भी ग़म लिखा है
जहाँ -जहाँ पर भी ग़म लिखा है