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|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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<poem>
'''हादसों पर गोष्ठियां'''
 हादसों पर गोष्ठियां
वे गोष्ठियों में लगे होते हैं
जितने हादसे और भ्रष्टाचार
उतनी ही गोष्ठियां,
उन्हें हादसों का इंतज़ार भी नहीं करना पड़ता,
गोष्ठी-कक्षों से निकलते ही
उन्हें क्या पड़ी है कि
वे हादसों के न होने की युक्तियाँ करें,
समय रहते सरकार को आग़ाह करें
--कि हादसे अंजाम तक न पहुंच पाएं
उन्हें बड़ी महारत हासिल है