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Kavita Kosh से
|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
}}
'''इब्ने-मरियम<ref>मरियम का बेटा अर्थात ईसा मसीह</ref>'''
तुम ख़ुदा हो <br>
ख़ुदा के बेटे हो<br>
या फ़क़त<ref>केवल</ref> अम्न<ref>शांति</ref> के पयंबर<ref>अवतार</ref> हो<br>य या किसी का हसीं तख़य्युलतख़य्युल<ref>सुन्दर कल्पना</ref> हो<br>
जो भी हो मुझ को अच्छे लगते हो<br>
जो भी हो मुझ को सच्चे लगते हो<br><br>
इस सितारे में जिस में सदियों से<br>
झूठ और किज़्ब<ref>झूठ</ref> का अंधेरा है<br>
इस सितारे में जिस को हर रुख़<ref>तरफ़</ref> से<br>
रंगती सरहदों ने घेरा है<br><br>
इस सितारे में, न जिस की आबादी<br>अम्न बोती है जंग काटती है<br><br>
रात पीती है नूर मुखड़ों का<br>
तुम न होते तो इस सितारे में<br>
देवता राक्षस ग़ुलाम इमाम<br>
पारसा<ref>पवित्र</ref> रिंद<ref>शराबी</ref> रहबर<ref>मार्गदर्शक</ref> रहज़न<ref>लुटेरा</ref><br>बिरहमन शैख़ पादरी भिक्षु<br>
सभी होते मगर हमारे लिये<br>
कौन चढता ख़ुशी से सूली पर<br><br>