{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=
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<poem>
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
आँख से दूर इतना मानूस न हो दिल ख़िल्वत-ए-ग़म से उतर जायेगा <br>अपनीवक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा<br><br> तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
इतना मानूस न हो ख़िल्वततुम सर-ए-ग़म से अपनी <br>राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगेतू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा <br><br>और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा
तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे <br>किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दोऔर वो बाम-ए-रफ़ाक़त मरने वाला तो फ़क़त बात से उतर जायेगा <br><br>मर जाएगा
ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला <br>तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा <br><br>जाएगा
डूबते -डूबते कश्ती तो ओछाला को उछाला दे दूँ <br>मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जायेगा <br><br>जाएगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"<br>ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जायेगा <br>जाएगा<br/poem>