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हीर / पंजाबी

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|रचनाकार=वारिस शाह
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{{KKLokGeetBhaashaSoochi
|भाषा=पंजाबी
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<poem>
हीर अक्खाँ जोगिया झूठ बोले
कौण विछड़े यार मिलावदाँ ई
ऐसा कोई ना मिलया वें मैं ढूँढ थकी
जेड़ा गया नूँ मोड़ लेयावँदा ई
हीर अक्खाँ जोगिया झूठ बोले<br>कौं विछड़े यार मिलावदाँई<br>ऐसा कोई ना मिलया वें मैं ढूँढ थकी<br>जेड़ा गया नूँ मोड़ लेयावँदाई<br><br> मेल रूहाँ दे अज़ल दे रोज़ होए<br>ते सच्चे इश्क दी न्यूँ तामीर होई<br>फुल्ल खिल गये पाक मोहब्बताँ दे<br>कोई राँझा होया, कोई हीर होई<br><br>
साडे चम दियाँ जुतियाँ करे सोई<br>जेड़ा ज्यू दा रोग गवावदाँई<br>भला दस खाँ चिड़ि व छुन्याँ नूँ<br>कदों रब सच्चा घरीं ले आवदाँई<br><br>
इक बाज़ तों कंग नू कूंज खोई<br>वेखाँ चुप है के कुरलावदाँई<br>दुखाँ वालेयाँ नू गल्लाँ सुखदियाँ ते<br>किस्से जोड़ जहान सुनावदाँई<br><br>
इक जट दे खेत नूँ अग्ग लगी<br>वेखाँ आण के कदों बुझावदाँई<br>देवाँ चूरियाँ घ्यों दे बाल दिवे<br>वारस शाह जे सुणा मैं गाँवदाँई<br><br>
मेरा जूजा मा जेड़ा आण मिले<br>सिर सदका ओस दे नाणदाँई<br>भला मोए ते विछड़े कौन मिले<br>ऐंवे जीवड़ा लोग बुलावदाँई<br><br/poem>
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