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कुछ शेर / फ़राज़

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[[Category:ग़ज़लशेर]] 
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1.
13.
आँखों में छुपाये अश्कों को होंठों में वफ़ा के बोल लिये
इस जश्न में भी शामिल हूँ नौहों से भरा कश्कोल लिये  14.दिल के रिश्तों कि नज़ाक़त वो क्या जाने 'फ़राज़'नर्म लफ़्ज़ों से भी लग जाती हैं चोटें अक्सर 15.चढते सूरज के पूजारी तो लाखों हैं 'फ़राज़', डूबते वक़्त हमने सूरज को भी तन्हा देखा | 16.उस शख़्स को बिछड़ने का सलीका भी नहीं,जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया ।
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